गाँव की गोरी को डॉक्टर दिल दे बैठे लेकिन बदकिस्मती से उन्हें दूर दिया पर हालात ऐसे बदले कि साहब को गोरी को इतना करीब लाया कि दोनों दो जिस्म एक जान हो गए.. एमबीबीएस की डिग्री मिलते ही मेरी पोस्टिंग उत्तर प्रदेश के एक गाँव में हो गई। गाँव वासियों ने अपने जीवन में गाँव में पहली बार कोई डॉक्टर देखा था। इसके पहले गाँव नीम हकीमों, ओझाओं और झाड़ फूँक करने वालों के हवाले था। जल्द ही गाँव के लोग एक भगवान की तरह मेरी पूजा करने लग गए, रोज़ ही काफ़ी मरीज़ आते थे और मैं जल्दी ही गाँव की ज़िंदगी में बड़ा महत्वपूर्ण समझा जाने लगा। गाँव वाले अब सलाह के लिए भी मेरे पास आने लगे। मैं भी किसी भी वक़्त मना नहीं करता था अपने मरीज़ों को आने के लिए! गाँव के बाहर मेरा बंगला था। इसी बंगले में मेरी डिस्पेन्सरी भी थी। गाँव में मेरे साल भर गुज़ारने के बाद की बात होगी यह। इस गाँव में लड़कियाँ और औरतें बड़ी सुन्दर सुन्दर थीं। ऐसी ही एक बहुत ख़ूबसूरत लड़की थी गाँव के मास्टर जी की। नाम भी उसका था गोरी। सच कहूँ तो मेरा भी दिल उस पर आ गया था पर होनी को कुछ और मंज़ूर था। गाँव के ठाकुर के बेटे का भी दिल उस पर आया
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